तेजस्वी यादव महागठबंधन में राजद के प्रभुत्व को लेकर आश्वस्त, पने तौर-तरीकों से कांग्रेस ने भी कुछ ऐसा ही संकेत दिया

पटना
समन्वय समिति की अध्यक्षता मिलने के बाद तेजस्वी यादव महागठबंधन में राजद के प्रभुत्व को लेकर आश्वस्त हो गए थे। अपने तौर-तरीकों से कांग्रेस ने भी कुछ ऐसा ही संकेत दिया था। हालांकि, महिलाओं को नकदी लाभ की घोषणा में श्रेय लेने की मची होड़ बता रही कि अंदरखाने सब कुछ सामान्य नहीं।

सत्ता मिलने पर हर महिला को मासिक ढाई हजार रुपये देने की घोषणा तेजस्वी पहले ही कर चुके थे। इस बीच बुधवार को कांग्रेस ने ऐसी ही योजना (माई-बहिन मान योजना) के लिए नामांकन कराने तक की घोषणा कर दी। इसके बाद राजद के भीतर सन्नाटा-सा पसर गया।

इसका कारण ऐसा है कि कोई किसी को दोष भी नहीं दे सकता। राजद ने भी यह घोषणा एकतरफा ही की थी। कांग्रेस ने हिसाब बराबर किया। वैसे भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान राजद के दांव-पेच को अभी तक भूली नहीं है।

विधानसभा चुनाव में महिलाओं को लुभाने के उद्देश्य से पिछले वर्ष 14 दिसंबर को तेजस्वी ने माई-बहिन योजना की घोषणा की थी। वह वस्तुत: राजद की घोषणा थी, जबकि बिहार में सत्ता की परिकल्पना महागठबंधन कर रहा। महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस, तीनों वाम दल (भाकपा, माकपा, माले) और विकासशील इन्सान पार्टी (वीआइपी) भी है।

वीआईपी तो वैसे भी चंचल है, लेकिन वाम दलों को भी राजद की इस एकतरफा घोषणा से कोई आपत्ति नहीं हुई। उसका कारण अस्तित्व की रक्षा के लिए एक-दूसरे के साथ की विवशता है। कांग्रेस अब इस विवशता से उबरना चाह रही, क्योंकि पिछले चुनावी वर्षों में अपने हितों से समझौते की त्रासदी वह झेलती रही है।

इस बीच बहाने के लिए उसे कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकारों द्वारा महिलाओं को दी जा रही नकदी लाभ का आसरा भी मिल गया। झारखंड में हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी का मूल कारण ही मंईयां सम्मान योजना रही। कांग्रेस उस सरकार में राजद से बड़ी हिस्सेदार है।

ऐसे में तेजस्वी की उस घोषणा का श्रेय लेने से कांग्रेस को कोई संकोच नहीं। उसका मानना है कि अंतत: लाभ महागठबंधन को ही होना है। यह कांग्रेस और राजद के नेताओं के मिले-जुले विचार हैं। अपने-अपने शीर्ष नेतृत्व के कोपभाजन बनने की आशंका में वे नाम उजागर करना नहीं चाहते।

महागठबंधन को तो लाभ तेजस्वी के वादे से भी मिल जाता! फिर कांग्रेस आतुर क्यों हुई! इसका कारण यह कि महागठबंधन से जुड़े समस्त निर्णय अब तक राजद ही लेता रहा है। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि अब आगे की राह निर्विघ्न नहीं।

तब सीटोंं से लेकर प्रत्याशियों के चयन तक में राजद ने मनमानी की थी। कांग्रेस वह घाव आज भी सहला रही है। अब विधानसभा चुनाव में उसे पसंद की कम-से-कम 70 सीटें चाहिए। राजद 50 के भीतर रखना चाह रहा, लिहाजा महागठबंधन के भीतर ही राजनीति होने लगी है।

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