
जबलपुर
व्यापमं घोटाले में फंसे डॉ. अजय कुमार मेहता को जबलपुर हाईकोर्ट बेंच से राहत मिली है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने व्यापमं घोटाले में उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर निरस्त करने के आदेश जारी किए हैं। साक्ष्यों के अनुसार याचिकाकर्ता ने किसी प्रकार का आर्थिक लेन-देन नहीं किया है। सीबीआई की रिपोर्ट में भी आर्थिक लेन-देन की बात नहीं कही गई है।
व्यापमं घोटाले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में अंक घोटाले के संबंध में डॉ. अजय मेहता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। हाईकोर्ट के आदेश पर यह जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। डॉ. मेहता पर आरोप था कि इस घोटाले में उन्होंने मिडिलमैन की भूमिका निभाते हुए मुख्य आरोपी से अभ्यर्थियों को मिलवाया था। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि कोई भी आर्थिक लेन-देन, व्यक्तिगत लाभ या आपराधिक साजिश का प्रमाण व दस्तावेज न होने के बावजूद उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है।
सीबीआई ने युगलपीठ को बताया कि मुख्य आरोपी नितिन मोहिंद्रा बोर्ड में सिस्टम एनालिस्ट था। उसके कार्यालय से कुछ एक्सेल शीट जब्त की गई थीं, जिनमें उम्मीदवारों के नाम, रोल नंबर, प्राप्त अंक, खाली छोड़े गए उत्तर विकल्प और उम्मीदवारों को दिए जाने वाले अंक का उल्लेख था। एक्सेल शीट में बिचौलियों के नाम और लेन-देन की गई रकम का भी उल्लेख किया गया था।
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि सह-आरोपी नितिन मोहिंद्रा ने अपने बयान में वर्तमान आवेदक का नाम नहीं लिया है। आवेदक ने अपने बयान में स्वीकार किया है कि नितिन मोहिंद्रा उसका दोस्त था। सीबीआई के आरोप पत्र में भी किसी आर्थिक लेन-देन या किसी अन्य प्रकार से लाभ पहुंचाने का कोई उल्लेख नहीं है। आरोप पत्र में ऐसा कोई तत्व नहीं है, जिसके आधार पर आवेदक के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सके। युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ एफआईआर निरस्त करने के निर्देश जारी किए हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय गुप्ता ने पैरवी की।